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ख़्वाबों की ज़ुस्तज़ू है आँखे बेदार होती जा रही है, स

ख़्वाबों की ज़ुस्तज़ू है आँखे बेदार होती जा रही है,
साँसे  बंद  नही  लेकिन  दुश्वार होती  जा  रही  है।

ख़्वाहिशों  का  भार  जैसे  कंधों पर  बढ़ता  गया,
दर्द नही है लेकिन ज़िंदगी कटार होती जा रही है।

यक़ीनन  मेरी  जिंदगी  एक खुली क़िताब जैसी है,
तभी मेरी मंज़िल हफ़्ते का इतवार होती जा रही है।

तेरे सवालों का शोर इस क़दर फैला है मेरे ज़हन में,
मेरी आँखें तेरे दीदार की तलबगार होती जा रही है।

अब तो  दरख्तों पर भी नए नए  फूल उग आए है,
एक उम्मीद है जो  टूटकर  बेज़ार होती जा रही है।

मरने के बाद भी ज़िंदगी खबरों में रहती है 'अंजान',
तभी  ज़िंदगी  रोज़  नया अख़बार  होती जा रही है। मरने के बाद (ग़ज़ल) 
बेदार- चौकन्ना
बेज़ार- खिन्न, अप्रसन्न

#कोराकाग़ज़ 
#collabwithकोराकाग़ज़ 
#रमज़ान_कोराकाग़ज़ 
#kkr2021
ख़्वाबों की ज़ुस्तज़ू है आँखे बेदार होती जा रही है,
साँसे  बंद  नही  लेकिन  दुश्वार होती  जा  रही  है।

ख़्वाहिशों  का  भार  जैसे  कंधों पर  बढ़ता  गया,
दर्द नही है लेकिन ज़िंदगी कटार होती जा रही है।

यक़ीनन  मेरी  जिंदगी  एक खुली क़िताब जैसी है,
तभी मेरी मंज़िल हफ़्ते का इतवार होती जा रही है।

तेरे सवालों का शोर इस क़दर फैला है मेरे ज़हन में,
मेरी आँखें तेरे दीदार की तलबगार होती जा रही है।

अब तो  दरख्तों पर भी नए नए  फूल उग आए है,
एक उम्मीद है जो  टूटकर  बेज़ार होती जा रही है।

मरने के बाद भी ज़िंदगी खबरों में रहती है 'अंजान',
तभी  ज़िंदगी  रोज़  नया अख़बार  होती जा रही है। मरने के बाद (ग़ज़ल) 
बेदार- चौकन्ना
बेज़ार- खिन्न, अप्रसन्न

#कोराकाग़ज़ 
#collabwithकोराकाग़ज़ 
#रमज़ान_कोराकाग़ज़ 
#kkr2021