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पल्लव की डायरी खो गये लगाव,हिस्सो में बट कर रह गये

पल्लव की डायरी
खो गये लगाव,हिस्सो में बट कर रह गये
अपनेपन के रिश्ते सब स्वाह हो गये
ना चीज दौलतों को पाने के लिये
लोग विश्वास खोते गये
कट गये प्यार के समुंदरों से
,नाले नाली जैसी गंदी सोच में सिमटते गये
अपनी पहचान और रुतवे के लिये
बुजर्गो और कुटुम्भ से अलगाव रखने लगे
रौंद कर माँ बाप के हिसाबो का एहसान 
डोर काटकर  कटी पतंग जैसे गुमने लगे
खप गयी उनकी जबानी,प्रतिफल तपस्या का देने लगे
हाथ फैलाकर,बुढ़ापे में भिखारी जैसे रखने लगे
                                                     प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"
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