इतना निहारते क्यों हो ज़िन्दगी को , ज़िन्दगी है कोई गैर नहीं,, हां पता है मुसीबत बहुत है , तो क्या ज़िन्दगी से ही पीछा छुड़ा लोगे,, ज़रा बाज़ू में बैठे हर बंदे से पूंछ तो सही मुसीबत सबको है ये जानते ही ज़िन्दगी को फिर से गले लगा लोगे,, अरे आग बना लो अपने अंदर उठ रही ज़ज़्बातों को,, उड़ा दो ग़मों के इन चंद लम्हातों को,, गले लगा इस सुनहरी कड़ी को ,, अरे ज़िन्दगी ही है ये कोई गैर नहीं,, ज़िन्दगी है कोई गैर नहीं