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भोर की बेला में निकल जाता है पोटली में बांधे गरम

भोर की बेला में
निकल जाता है 
पोटली में बांधे 
गरम गरम रोटियां। 
रामकिशुन
कुछ प्याज के टुकड़े 
और गुड़ भी रख दी है !
नई नवेली मेहरारु ने।
धरती को चीरना है '
कड़ा श्रम भरी दुपहरी 
पसीने से नहाया बदन ।
धरती को चीरता रामकिशुन !
अनगिनत सपनों को 
साकार करने का भ्रम । 
सपने तो सपने ही होते हैं !
पुरा भी हुआ एक सपना 
जब ब्याह कर लाया था !
सुंदर सुघड़ कजरारे नैनो वाली 
मरद होने का अहसास कराकर 
शर्म हया से सकुचाई !
रगों मे भर दी थी एक नयी उर्जा ।
 अब  अकेला नही है रामकिशुन 
उसकी संगिनी है साथ में !
स्री धर्म को निभाने के लिये ।
हारा नहीं है 
मौसम ने लाख दुश्मनी निभायी ।
बढता रहा है कर्म पथ पर !
कभी न कभी 
वो सुबह तो आयेगी !
दूर तलक खेतों में
सोने जैसी फसल लहलहायेगी। 
संजय श्रीवास्तव रामकिशुन
भोर की बेला में
निकल जाता है 
पोटली में बांधे 
गरम गरम रोटियां। 
रामकिशुन
कुछ प्याज के टुकड़े 
और गुड़ भी रख दी है !
नई नवेली मेहरारु ने।
धरती को चीरना है '
कड़ा श्रम भरी दुपहरी 
पसीने से नहाया बदन ।
धरती को चीरता रामकिशुन !
अनगिनत सपनों को 
साकार करने का भ्रम । 
सपने तो सपने ही होते हैं !
पुरा भी हुआ एक सपना 
जब ब्याह कर लाया था !
सुंदर सुघड़ कजरारे नैनो वाली 
मरद होने का अहसास कराकर 
शर्म हया से सकुचाई !
रगों मे भर दी थी एक नयी उर्जा ।
 अब  अकेला नही है रामकिशुन 
उसकी संगिनी है साथ में !
स्री धर्म को निभाने के लिये ।
हारा नहीं है 
मौसम ने लाख दुश्मनी निभायी ।
बढता रहा है कर्म पथ पर !
कभी न कभी 
वो सुबह तो आयेगी !
दूर तलक खेतों में
सोने जैसी फसल लहलहायेगी। 
संजय श्रीवास्तव रामकिशुन

रामकिशुन