भोर की बेला में निकल जाता है पोटली में बांधे गरम गरम रोटियां। रामकिशुन कुछ प्याज के टुकड़े और गुड़ भी रख दी है ! नई नवेली मेहरारु ने। धरती को चीरना है ' कड़ा श्रम भरी दुपहरी पसीने से नहाया बदन । धरती को चीरता रामकिशुन ! अनगिनत सपनों को साकार करने का भ्रम । सपने तो सपने ही होते हैं ! पुरा भी हुआ एक सपना जब ब्याह कर लाया था ! सुंदर सुघड़ कजरारे नैनो वाली मरद होने का अहसास कराकर शर्म हया से सकुचाई ! रगों मे भर दी थी एक नयी उर्जा । अब अकेला नही है रामकिशुन उसकी संगिनी है साथ में ! स्री धर्म को निभाने के लिये । हारा नहीं है मौसम ने लाख दुश्मनी निभायी । बढता रहा है कर्म पथ पर ! कभी न कभी वो सुबह तो आयेगी ! दूर तलक खेतों में सोने जैसी फसल लहलहायेगी। संजय श्रीवास्तव रामकिशुन