सुरूर मोहब्बत का, बहका देता है कदम किसी के..! किस

सुरूर मोहब्बत का,
बहका देता है कदम किसी के..!

किसी को जिम्मेदारियों का,
अहसास दिला जाता है..!

जो रहता है ख़ुद से ही दूर,
वो ख़ुद को नये रिश्तों में बँधा पाता है..!

बदल जाता है भाग्य भी,
कभी इश्क़ के प्रभाव से..!

कभी कभी नई मुसीबतों में,
ख़ुद को घिरा पाता है..!

चाहता है ख़ुशियाँ का,
भण्डार जीवन में समेटना..!

पर हर चीज़ हर किसी को,
कहाँ नसीब हो पाता है..!

©SHIVA KANT
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