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सितम कुछ ज़्यादा नहीं हैं एक हिसाब से... लक़ीरे ग़

सितम कुछ ज़्यादा नहीं हैं एक हिसाब से...
लक़ीरे ग़ायब हैं क़िस्मत की क़िताब से..।

आँसू थम जाये मुमकिन लगता नहीं हैं...
दर्द ने आँखें भर लायी हैं चिनाब से..।

और कुछ हुनर हो अगर बात आगे बढे़ ...
कब तक आप काम चलाओगे शबाब से..।

इश्क़ में तुम्हांरा क़त्ल ज़रूरी हैं क्यां... 
ऎसे ही पूछ लिया था आज गुलाब से..।

चोर, बेईमान इकट्ठे हैं महफ़िल में...
हमारी ख़ामोशी अच्छी है जवाब से..।

इजाज़त हो तो ‘ ख़ब्तुल ’, मुजरिम पेश करू...
देख, रूँह निकाल लाया हूँ सुरखाब से..।

    
                    - ख़ब्तुल
               संदीप बडवाईक सुरखाब
सितम कुछ ज़्यादा नहीं हैं एक हिसाब से...
लक़ीरे ग़ायब हैं क़िस्मत की क़िताब से..।

आँसू थम जाये मुमकिन लगता नहीं हैं...
दर्द ने आँखें भर लायी हैं चिनाब से..।

और कुछ हुनर हो अगर बात आगे बढे़ ...
कब तक आप काम चलाओगे शबाब से..।

इश्क़ में तुम्हांरा क़त्ल ज़रूरी हैं क्यां... 
ऎसे ही पूछ लिया था आज गुलाब से..।

चोर, बेईमान इकट्ठे हैं महफ़िल में...
हमारी ख़ामोशी अच्छी है जवाब से..।

इजाज़त हो तो ‘ ख़ब्तुल ’, मुजरिम पेश करू...
देख, रूँह निकाल लाया हूँ सुरखाब से..।

    
                    - ख़ब्तुल
               संदीप बडवाईक सुरखाब