वक्त बांधा था उसने कभी कलाई पर मेरी इस वादे के तौर पर के कभी बदलेगा नहीं न वो रहा न वो वक्त अब साथ बेबसी बेरुखी को उसके कोसते कब तलक बेहतर वक्त को बांधना छोड़ बैठे वो आदत ए अदा अपनी रूमानियत कलाई की तोड़ बैठे।। कभी अटारी पे बैठ छज्जे से झांकती उस वक्त को देख तेरी बाट जोहती थी कहीं दूर तू आ रहा है या नहीं हर किसी से खबर पूंछती थी न वो राह न वो राह ओ राही है अब एहतियातन अब राह अकेली मोड़ बैठे वो परवाज ए अदा प्यार की हकीकत से जोड़ बैठे।। #lostdays #brokenheart