मैं लखनऊ का एक वाक़या बताता हूँ, एक लड़का चार दिन से मेडिकल स्टोर से पैरासीटामोल खरीद रहा था, मेडिकल स्टोर वाले को शक हुआ, उसने पुलिस को ख़बर कर दी, पूरी टीम उस लड़के को चेक करने आ गई, पूरी डिटेल्स ली जाने लगी, पूरे एरिये में ये हो गया कि शायद कोई कोरोना पॉज़िटिव है। बाद में पता चला कि वो नेगेटिव है, और उसे वायरल फ़ीवर था। अब आपको बता दे लड़का हिन्दू था। यही लड़का मुस्लिम होता तो दिमाग मे यही आता कि जबरन इसे पॉज़िटिव बताया जा रहा, बेवजह तूल दिया जा रहा वगैरह वगैरह। हो सकता है मुरादाबाद में कोई हार्ट की दिक्कत से मरा हो लेकिन इस वक़्त आप इस बात का दावा नही कर सकते, ये समझिये की लोग क्यो इतने गंभीर है, अच्छा इन जाँच से किसका फायदा होता? आपका ही तो होता, आपके परिवार का, आपकी बस्ती का। मगर कहते नही है जाहिलो की बातों में आकर जाहिलयत दिखा गए, आपको लगता है कोई सही नही बोल रहा वीडियो बनाइये लेकिन आप कहे कि ऐसी घटना का बचाव किया जाए तो भूल जाइए, बेहूदा हरकत थी इसे मान लीजिये, बाक़ी जो पढ़े लिखे समझदार मुस्लिम है उनसे गुज़ारिश है कि वो समझाए, समझाने का असर होता है। जब कोरोना की शुरुआत हुई थी तो मेरी पड़ोसन ने कहा कि मुस्लिमो को ये बीमारी नही हो रही, उस वक़्त ईरान में इस बीमारी ने ज़ोर पकड़ा था, तब मैंने उन्हें समझाया कि मुस्लिम कोई अलग दुनिया से नही आये है, कोई पचास साला ऐसा मुस्लिम लेकर आइये जिसके कभी ज़ुकाम न हुआ हो, मैं आपकी बात मान लूंगा, बहरहाल मेरे समझाने का असर हुआ, वो अच्छे से लॉकडाउन का पालन कर रही और दिमाग से ये गलतफहमी दूर कर चुकी है। The Umars Mood #CARONA