जो कल था वो आज नही जो कल तक थी मंज़िल, आज वहां तक पहुंच कर भी कुछ मज़ा नही । पहुंचने से पहले था जो सब कुछ, आज उसमे रहा वो उत्साह नही। मन है आज वहां पर में नही कल मै वहां होऊंगा और मन और कहीं, वहां नही। में जो कल था वो आज नही, वक्त जो आज है वो कल नही। - सहज सभरवाल जो कल था वो आज नही जो कल तक थी मंज़िल, आज वहां तक पहुंच कर भी कुछ मज़ा नही । पहुंचने से पहले था जो सब कुछ, आज उसमे रहा वो उत्साह नही। आज मै वो ही हूं जो बचपन का था सपना,