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प्रेम ,त्याग से ही बना है, और त्याग प

             प्रेम ,त्याग से ही बना है, और त्याग प्रेम
 से, दोनों ही एक दूसरे के पूरक है। यदि प्रेम नहीं
 होता तो हम किसका त्याग करते त्याग उसी का
किया जाता है जो हमारा हो या हमारे पास हो और
जिसे हम बहुत प्रेम करते हों।जैसे कि लक्ष्मण ने
वन ने वन नहकर  और उर्मिला ने महल में रहकर ही 
त्याग का परिचय दिया। यशोधरा ने महल में रहका
इमरोज अमृता के साथ ही रहे, छुआ तक नहीं, आदि।
      "जिस्म की भूख को प्यार नहीं कहते , उसे बाहों
में भरने से पहले ही मुक्त कर दो।"ये प्यार का उत्तम 
स्वरूप है।त्याग जितना बड़ा होगा प्रेम उतना ही
 प्रबल होगा। वैसे प्यारका कोई मापक नहीं है किंतु, 
प्रेमी की खुशी, उसकी मनोदशा से प्यार की हद को
 समझ सकते हैं।
            " परिंदों को आजाद करदो, उन्हें 
    हवा में स्वच्छंद उड़ने दो, यही तो प्रेम है।"

©Kalpana Tomar
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