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भोर होते ही स्त्रियाँ ढूढ़ने लगती हैं, कोने में रखी

भोर होते ही स्त्रियाँ ढूढ़ने लगती हैं,
कोने में रखी झाड़ू के तिनके,
बटोरने लगती हैं आंगन में पसरी 
बासी बची कुची रात के टुकड़े,
और समेटने लगती हैं,
तारों से टपके उजालों की बूंदे,
दिन चढ़ते ही गूंदने लगती हैं,
अपनी कविताऐं और फिर चुपचाप,
सेंक देती हैं अपने गीत,
परोस देती हैं अपने रचे कुछ महाकाव्य,
और बांट देतीं हैं अपने बुने कुछ सपने!
वास्तव में स्त्रियाँ बांध कर बदल देती हैं,
अपने घर को एक मुक्तक काव्य में ! ! !
क्योंकि स्त्रियाँ जानती हैं,
भूखी कविताओं का दर्द!!

©Neha singh #Women #aslineha #neha #nehasingh #yqdidi #Hindi #hindi_poem #hindi_quotes #hindi_poetry
भोर होते ही स्त्रियाँ ढूढ़ने लगती हैं,
कोने में रखी झाड़ू के तिनके,
बटोरने लगती हैं आंगन में पसरी 
बासी बची कुची रात के टुकड़े,
और समेटने लगती हैं,
तारों से टपके उजालों की बूंदे,
दिन चढ़ते ही गूंदने लगती हैं,
अपनी कविताऐं और फिर चुपचाप,
सेंक देती हैं अपने गीत,
परोस देती हैं अपने रचे कुछ महाकाव्य,
और बांट देतीं हैं अपने बुने कुछ सपने!
वास्तव में स्त्रियाँ बांध कर बदल देती हैं,
अपने घर को एक मुक्तक काव्य में ! ! !
क्योंकि स्त्रियाँ जानती हैं,
भूखी कविताओं का दर्द!!

©Neha singh #Women #aslineha #neha #nehasingh #yqdidi #Hindi #hindi_poem #hindi_quotes #hindi_poetry
nehapatel5953

Neha singh

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