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ख्वाहिशों का बाज़ार ख्वाहिशों का बाज़ार हर

        ख्वाहिशों का बाज़ार
ख्वाहिशों का बाज़ार हर रोज लगता है
ये और बात है की ख्वाहिशे कबूल  नहीं
होती, ख्वाहिश मन के भीतर ही दम तोड़
देती है,हर लम्हा एक ख्वाहिश टूट कर 
एक और जोड़ देती है, ख्वाहिशों का बाज़ार 
हर रोज लगता है............. 
कभी ख्वाहिश, खुद को खुशियों का संसार,मिलें
कभी ख्वाहिश,की दौलत  की बौछार मिलें
कभी ख्वाहिश, की पद प्रतिष्ठा मिले, कभी ,
ख्वाहिश की मन चाहा प्यार मिले,ख्वाहिशों का 
में और क्या बखान करूँ, नित दिन ख्वाहिशों का
नया बाजार लगे, ये और बात है की ख्वाहिशें
कबूल नहीं होती. 
हर ख्वाहिश अधूरी रहकर पल पल मुझे चिढ़ाती है
मेरी लाचारी का उपहास उडा कर, अपना बाज़ार
सजाती है

©पथिक..
  #बाज़ार#ए#बाज़ार