बन्द पड़ी न जाने, कब से थी सूखी सी ढेरी । मिला न पानी का फव्वारा, मिली न धूप घनेरी ।। फ़िर भी मन में आस लिए, वह बिखरी रही बेचारी । हरी घास की गठरी, मुरझाई बिच चार दिवारी ।। इस कविता के शायद अन्य अर्थ भी लगाए जा सकते हैं.. आपने इसे किस रूप में लिया, अवश्य बतायें.. Much Love.. बन्द पड़ी न जाने, कब से थी सूखी सी ढेरी । मिला न पानी का फव्वारा,