कितना सा ही तो रही पिता के अंगना.. बेटी, बाप को अब छोटी लग रही है.. समाज के उन दो चार लोगों को.. अब वो ब्याह लायक लग रही है.. बेटीयां अपने नसीब का ख़ुद ले रही है.. अभी तो बेटी बाप के घर पर ही है.. पर उसकी रोटी समाज को खल रही है।। बेटी इतनी बड़ी पिता को नहीं लगती है.. जितनी समाज को लगने लगती है.... ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ कितना सा ही तो रही बाबुल अंगना। बेटी, बाप को अब छोटी लग रही है।। समाज के उन दो चार लोगों को। अब वो ब्याह लायक लग रही है। बेटीयां अपने नसीब का ख़ुद ले रही है।।