अपयश की आंच में शनै:-शनै: भाव पके, नमक थोड़ा ज्यादा शक्कर थोड़ा-थोड़ा, प्यार में ऐसी रफ्तार प्यास बनते ना देर लगे। सरक कर सरपट सच, मौन बन गौण रहे वह। निर्गुण परमेश्वर मुंह तके, रस-रंग-रुप हर ओर मंझे। धरा पुकारे, "ऐ अंबर बरस, काहे जिए तरस-तरस!!" दुनियादारी .............. अपयश की आंच में शनै:-शनै: भाव पके, नमक थोड़ा ज्यादा शक्कर थोड़ा-थोड़ा, प्यार में ऐसी रफ्तार प्यास बनते ना देर लगे।