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अपयश की आंच में शनै:-शनै: भाव पके, नमक थोड़ा ज्याद

अपयश की आंच में
शनै:-शनै: भाव पके,
नमक थोड़ा ज्यादा 
शक्कर थोड़ा-थोड़ा,
प्यार में ऐसी रफ्तार
प्यास बनते ना देर लगे।

सरक कर सरपट सच,
मौन बन गौण रहे वह।
निर्गुण परमेश्वर मुंह तके,
रस-रंग-रुप हर ओर मंझे। 
धरा पुकारे, "ऐ अंबर बरस,
काहे जिए तरस-तरस!!" दुनियादारी
..............
अपयश की आंच में
शनै:-शनै: भाव पके,
नमक थोड़ा ज्यादा 
शक्कर थोड़ा-थोड़ा,
प्यार में ऐसी रफ्तार
प्यास बनते ना देर लगे।
अपयश की आंच में
शनै:-शनै: भाव पके,
नमक थोड़ा ज्यादा 
शक्कर थोड़ा-थोड़ा,
प्यार में ऐसी रफ्तार
प्यास बनते ना देर लगे।

सरक कर सरपट सच,
मौन बन गौण रहे वह।
निर्गुण परमेश्वर मुंह तके,
रस-रंग-रुप हर ओर मंझे। 
धरा पुकारे, "ऐ अंबर बरस,
काहे जिए तरस-तरस!!" दुनियादारी
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अपयश की आंच में
शनै:-शनै: भाव पके,
नमक थोड़ा ज्यादा 
शक्कर थोड़ा-थोड़ा,
प्यार में ऐसी रफ्तार
प्यास बनते ना देर लगे।
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