#KisanDiwas जीवन के झंझावात में, चाहें दिन हो या फिर रात में, देह थक कर हो जाए चूर फिर भी शेष बचाने को मजबूर, दाता का भी अन्नदाता वह थके हुए हाथों से नित खेतों में हल चलाता वह, जीता है हमारे पेट बचाने को पर कौन बचाए? उसके लुटे खजाने को एक पेड़ जो कल उसने बोया था छाया की खातिर उसके नीचे सोया था | आज उसी पेड़ की डाली पर, हा !देह उसकी झूल रही, यह हत्या है या ख़ुदकुशी? जो गुमनाम था कल तक लोगो में आज अखबारों की बना सुर्खी जो कर्ज बना था मर्ज़ उसका जिस वजह वह काल का ग्रास बना जैसे मुँह चिढ़ाता सा आज दिला रहा मुआवजा हाथ तो कल भी उसके रीते थे आज भी मुट्ठी खुली हुई कोई न आया आगे उसे बताने को कि वह जीता रहा हमारे पेट बचाने को साँसे भी लुटा दी आज भरने के लिए अपने खजाने को | #जीता रहा हमारे #पेट बचाने को #साँसे भी लुटा दी #आज भरने के लिए अपने #खजाने को penned by me.. #स्मृति.... #Monika