मनोवेदना नाराज़ किससे रहूँ भला! यहाँ हर कोई अश्रु पिये बैठा है। किससे कहूँ मैं दर्दे दिल की दास्तान, घायल यहाँ हर कोई मरहम लगा बैठा है। किसकी आखों की चमक से आँख मिलाऊँ, बड़प्पन का चश्मा यहाँ हर कोई लगा बैठा है। दो बातें दिल की दिल खोलकर किसे सुनाऊँ, यहाँ हर कोई अपने खयालों में नज़रबंद बैठा है। बस तू ही है ऐ खुदा जो वाकई सुन लेता है, यहाँ पर बस तू ही अपना दरबार खोले बैठा है। #कोराकाग़ज़ #विशेषप्रतियोगिता #कोराकाग़ज़जिजीविषा