मुकद्दर तेरा मेरा इक सर नहीं था वफ़ा का हाँ मौसम भी महशर नहीं था रंज था फ़िज़ा में,जुड़ी तल्खियाँ भी किस्सा वो जफ़ा का जबाँ पर नहीं था गलत इम्तियाज़े जुबां से बयां था समझ तुम हमें जाते वो मंज़र नहीं था नफ़ा और नुकसान ही देखा सनम क्यों वफ़ा का तराज़ू बराबर नहीं था बहा 'नीर' आंखों से मेरी सनम लगी चोट ये दिल था पत्थर नहीं था। ♥️ मुख्य प्रतियोगिता-1033 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊 ♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।