बीमारी अलग है और इलाज कोई... हो सकता है हक़ीम का, रिवाज़ कोई..। एक आह रात भर बहुत चीखती रही... मज़ा माँग रहां था दूरदराज़ कोई ..। इतने नज़दीक हो कि,आँख नहीं जाती... फासलों सॆ माँग लूँ क्यां जहाज कोई..। रोज उसूलों की माँ-बहन रो रही हैं... चलो ना बनाते है हम समाज कोई..। अमीरी की प्यास कई मुफ़लिस खा गयी... भूख से कितना जुदा है अनाज कोई..। मालूम नहीं किस तरह खुदा मानता हैं... दुआ हो ‘ख़ब्तुल’ या पढ़े नमाज़ कोई..। - ख़ब्तुल संदीप बडवाईक ©sandeep badwaik(ख़ब्तुल) 9764984139 instagram id: Sandeep.badwaik.3 रिवाज