धूप मिटा दो,छांव मिटा दो,मेरे सब अरमान मिटा दो छोड़ दो बस मुझको मुझमें,बाकी सब पहचान मिटा दो कहां- कहां से जोड़ें ख़ुद को,यहां-वहां से तोड़ें ख़ुद को ख़त्म करो ये किस्सा तुम भी,बाकी सब निशान मिटा दो लगता नहीं है,कहीं दिल अब मेरा,रातें है लंबी,उलझा है सवेरा छोड़ दो बस कुछ उम्मीदें मुझमें,बाकी सब ग़ुमान मिटा दो बस इतनी सी बात हुई है,सुबह से फिर शाम हुई है हुआ है अंबर का रंग गुलाबी,फ़ीकी हर मुस्कान हुई है शायद अब फिर लौट न पाऊं,दूर कहीं पर मुकाम बनाऊं छोड़ दो कुछ ख़ुद को मुझमें,बाकी सब अनुमान मिटा दो चोट पर फिर से चोट लगी है,अश्कों पर फिर से रोक लगी है हुए हैं सुर्ख़ चांद-सितारे,जाने किसकी टोक लगी है... © abhishek trehan #मिटादिया #धूप #छांव #निशान #फ़ीकी #lifepoetry #yqdidi #hindipoetry