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तेरी बेरुखी भी ना जाने क्यूँ इतनी अजीज़ लगती है अ

तेरी बेरुखी भी ना जाने क्यूँ इतनी अजीज़ लगती है

अपनों का अपनापन भी ना जाने क्यूँअपना नहीं लगता
तेरी बेरुखी भी ना जाने क्यूँ इतनी अजीज़ लगती है

अपनों का अपनापन भी ना जाने क्यूँअपना नहीं लगता