देशभक्ति का जुनून उनमें, कूट कूट कर भरी थीं, जब अंग्रेजों की बेड़ियां, चहुंओर देश में पड़ी थी। भगत, सुखदेव और राजगुरु देश के वीर लाल थे। इन क्रांतिवीरों के रगों में बहती लहू में उबाल थे।। जब भगतसिंह ने तिलक लगाए जालियां वाला बाग में। मानो वो झुलस रहे हो, उस नरसंहार बदले की आग में। गतिविधियां उन क्रांतिकारियों की देख, अंग्रेज थर्राते थे। चोरी-चौरा जैसे कांड देख, अंग्रेज़ बेहद घबरा जाते थे। लाला लाजपतराय की बदला, स्कॉट को मार गिराने का, ठाना एक दिन असेम्बली में, साथियों संग बम गिराने का। धमाका से बहरी सरकार के खिलाफ़, नौजवान जागेंगे। बम फेक, देंगे गिरफ्तारियां हम कदापि न भागेंगे। वे जेल में भी, सैकड़ों क्रान्तिकारियों के पुस्तकें पढ़ डाले थे, वे वीर सपूतों ने, मात्र देश की आजादी दिलों में पाले थे। कहे मां से-दुल्हन मेरी आजादी होगी, ऐसे प्रण उनके निराले थे। वे जन्मे थे मात्र देश के लिए, भारत मां के सच्चे अमर लालें थे। 23 मार्च का वह काला दिन, जब तीनों को फांसी पर लटकाने वाले थे। तीनों साथियों ने मिलकर गीत गाए, इन्कलाब जिंदाबाद,इन्कलाब जिंदाबाद, वन्दे मातरम् की गूंज निराले थे। धरती गूंजी, आसमान गूंजा, गूंज उठी चारों दिशाएं उनकी हंसी से। अंग्रेज़ी हुकूमत झुका नहीं पाए, इन अमर क्रान्तिकारियों को फांसी से। - राजेन्द्र कुमार मंडल सुपौल (बिहार) ©Rajendra Kumar Ratnesh #अमर बलिदान।