तुम्हारे जीवन में फैला है प्रेम का उजियारा, तुम प्रेम लिखो। मेरे जीवन में फैला है ग़म का अंधियारा मैं ग़म लिखुँ। फिर क्यों तुम मेरे लफ्ज़ों पे सवाल उठाते हो, समझते नहीं मेरे शब्दों को, और मुझपर शब्दरूपी बाण चलाते हो। प्रेमास्पर्श पाकर तुम आल्हादित हो, मैं प्रेमप्रलय में तिनके सा प्लावित हूँ, तुम प्रेममय होकर प्रेम की बात लिखो, मैं क्षत-विक्षत हृदय की चीत्कार की बात लिखुँ। तुम उन्मुक्त प्रेम वन में विचरण करती, मृगया को चंचल लिखो। मैं प्रेमघात रक्ताक हृदय की करुणामय रुदन लिखुँ।। फैला है जीवन में तुम्हारे प्रेम का उजियारा, तुम प्रेम लिखो। मेरे जीवन में फैला है ग़म का अंधियारा मैं ग़म लिखुँ। ©Ajay ©Khamosh Zindagi तुम्हारे जीवन में फैला है प्रेम का उजियारा, तुम प्रेम लिखो। मेरे जीवन में फैला है ग़म का अंधियारा मैं ग़म लिखुँ। फिर क्यों तुम मेरे