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रात ढल चुकी है , चांद निकल चुका है, ठंडी सी हवा न

रात ढल चुकी है , 
चांद निकल चुका है,
ठंडी सी हवा ने आज रुख बदला है,
अंधेरों में भी,
ढूंढ रही है मेरी निगाहें,
बस ,
इन्तजार है, आपका
युगों युगों से,
एक पल, 
एक  एक लम्हा,
बस ,
इन्तजार 
है आपका,।

©ADV.काव्या मझधार( DK) महाकाल उपासक
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