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इस दिल में अब कोई प्रेम नहीं, ना साथ बचे कोई अपने,

इस दिल में अब कोई प्रेम नहीं, ना साथ बचे कोई अपने,
हर नस में घुटन है दौड़ रही, इन आंख में टूटे हैं सपने,
मैं फ़िर भी ख़ुद को साध, कभी तो क्षण–२ करके जीता हूं,
कुछ लोग समय संग छूट गए,एक प्रेम के गम को पीता हूं ।
.
मैं रात में तन्हा जागा सा, ख़ुद की परछाईं से डरता हूं,
हां चीख रहीं अब भी यादें, मैं प्रेम उसी से करता हूं,
कि कहीं वो कहती दीवारें, लिपटी चादर में चिंताएं,
मैं तन्हा छूट गया गर यहां, फिर किस से करूंगा आशाएं,
कोई थामे हाथ और संग चलदे, कोई गले लगाए घर करदे,
कोई बैठ मुझे फिर समझाए, इस मुर्दे में सांसें भरदे ।
.
मैं टूट के जब भी शीशे सा, टुकड़े टुकड़े सा होता हूं,
मुझे डर लगता है दूरी से, अपनों के गम को ढोता हूं,
एक नदिया जिससे था प्रेम बड़ा, उसके आगे ही झुकना था,
उस तट से दूर निकल गए वो, उन्हें थोड़ा सा और रुकना था ।
.
:- शिवम नाहर

©Shivam Nahar #Poetry 

#LateNight
इस दिल में अब कोई प्रेम नहीं, ना साथ बचे कोई अपने,
हर नस में घुटन है दौड़ रही, इन आंख में टूटे हैं सपने,
मैं फ़िर भी ख़ुद को साध, कभी तो क्षण–२ करके जीता हूं,
कुछ लोग समय संग छूट गए,एक प्रेम के गम को पीता हूं ।
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मैं रात में तन्हा जागा सा, ख़ुद की परछाईं से डरता हूं,
हां चीख रहीं अब भी यादें, मैं प्रेम उसी से करता हूं,
कि कहीं वो कहती दीवारें, लिपटी चादर में चिंताएं,
मैं तन्हा छूट गया गर यहां, फिर किस से करूंगा आशाएं,
कोई थामे हाथ और संग चलदे, कोई गले लगाए घर करदे,
कोई बैठ मुझे फिर समझाए, इस मुर्दे में सांसें भरदे ।
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मैं टूट के जब भी शीशे सा, टुकड़े टुकड़े सा होता हूं,
मुझे डर लगता है दूरी से, अपनों के गम को ढोता हूं,
एक नदिया जिससे था प्रेम बड़ा, उसके आगे ही झुकना था,
उस तट से दूर निकल गए वो, उन्हें थोड़ा सा और रुकना था ।
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:- शिवम नाहर

©Shivam Nahar #Poetry 

#LateNight