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आज बहुत दिनों बाद एक नज़्म लिखी है, नज़्म में सिर्फ़

आज बहुत दिनों बाद एक नज़्म लिखी है,
नज़्म में सिर्फ़ तेरी ही बात लिखी है, वो हमारी पहली मुलाक़ात की दास्तां लिखी है,
ट्रैन का मेरा सफ़र और फिऱ तेरे शहर में गुज़री मेरी रात की कहानी लिखी है,
मेरी ट्रेनिंग के टाइम में वो छुट्टियों के बहाने बना कर तुझसे मुलाकात की वो हसीन शब-ए-वस्ल लिखी है,
कैसे तू मेरी नब्ज़ देख कर मेरा हाल बता देती थी, बुख़ार में मेरा सर दबा देती थी,
जब-जब तू मुझे सीने से लगाती थी मानों ज़िन्दगी वहीं थम सी जाती थी,
तेरे होंठ मेरे होंठो से टकराते थे, तब-तब मेरी साँसों को महका देते थे,
वो छत में हमारा बैठ कर ढेर सारी बातें करना, तेरा वो हँसते हुए वो मेरे बच्पन की नादानियों के किस्से सुन्ना,
तेरी वो हाँसी के अफसाने लिखे है,
आज बहुत दिनों बाद एक नज़्म लिखी है, नज़्म में सिर्फ़ बस तेरी ही बात लिखी है,
तेरी नाक का वो तिल जो मुझे बहुत प्यारा लगता था, दुनियां में तेरे सिवा मुझे कोई ख़ुबसूरत नहीं लगता था,
मेरी पहली पोस्टिंग में तेरा वो मुझे दवाइयों से भरा हुआ बॉक्स देना, हर दावा को कैसे और कब खाना है वो सब डिटेल्स में लिख देना,
तेरी आँखे उस समंदर से भी ज्यादा गहरी थी जिनमें कभी मैं डूब जाया करता था,
मेरा वो डयूटी के लिए तुझसे दूर जाना  और तेरा वो दरवाज़े में खड़े रह के बस मुझे घूरना लिखा है, हिज्र की रातों में बहे तेरे आँसूओं की सिहाई से ये नज़्म लिखी है, नज़्म में बस तेरी ही बात लिखी है,
काश तू होती तो आज मैं यूँ बंजारा ना फ़िरता, कोई बेहाया मुझसे मेरी औकात ना पूछती,
तेरे लिए मेरा इश्क़ हमेशा खास था, कड़ी धूप में छाव था, काश मैं कभी तेरे मन को समझा होता, खुदगर्ज़ी में तेरे से दूर ना होता,
अपनी पलकों में मेरे ख़्वाब भी सजा लेती थी, मेरे बदले के आँसू भी बहा लेती थी, मेरी पल्लो मुझे अपनी पलकों में छुपा लेती थी,
तेरी पलकों पे सजे मेरे ख़्वाबों की दुनियां लिखी है, आज बहुत दिनों बाद एक नज़्म लिखी है और नज़्म में सिर्फ़ तेरी ही बात लिखी है।

©Lohit Tamta आज बहुत दिनों बाद एक नज़्म लिखी है,
नज़्म में सिर्फ़ तेरी ही बात लिखी है, वो हमारी पहली मुलाक़ात की दास्तां लिखी है,
ट्रैन का मेरा सफ़र और फिऱ तेरे शहर में गुज़री मेरी रात की कहानी लिखी है,
मेरी ट्रेनिंग के टाइम में वो छुट्टियों के बहाने बना कर तुझसे मुलाकात की वो हसीन शब-ए-वस्ल लिखी है,
कैसे तू मेरी नब्ज़ देख कर मेरा हाल बता देती थी, बुख़ार में मेरा सर दबा देती थी,
जब-जब तू मुझे सीने से लगाती थी मानों ज़िन्दगी वहीं थम सी जाती थी,
तेरे होंठ मेरे होंठो से टकराते थे, तब-तब मेरी साँसों को महका देते थे,
वो छत में हमारा बैठ कर ढेर सारी बातें करना, तेरा वो हँसते हुए वो मेरे बच्पन की नादानियों के किस्से सुन्ना,
आज बहुत दिनों बाद एक नज़्म लिखी है,
नज़्म में सिर्फ़ तेरी ही बात लिखी है, वो हमारी पहली मुलाक़ात की दास्तां लिखी है,
ट्रैन का मेरा सफ़र और फिऱ तेरे शहर में गुज़री मेरी रात की कहानी लिखी है,
मेरी ट्रेनिंग के टाइम में वो छुट्टियों के बहाने बना कर तुझसे मुलाकात की वो हसीन शब-ए-वस्ल लिखी है,
कैसे तू मेरी नब्ज़ देख कर मेरा हाल बता देती थी, बुख़ार में मेरा सर दबा देती थी,
जब-जब तू मुझे सीने से लगाती थी मानों ज़िन्दगी वहीं थम सी जाती थी,
तेरे होंठ मेरे होंठो से टकराते थे, तब-तब मेरी साँसों को महका देते थे,
वो छत में हमारा बैठ कर ढेर सारी बातें करना, तेरा वो हँसते हुए वो मेरे बच्पन की नादानियों के किस्से सुन्ना,
तेरी वो हाँसी के अफसाने लिखे है,
आज बहुत दिनों बाद एक नज़्म लिखी है, नज़्म में सिर्फ़ बस तेरी ही बात लिखी है,
तेरी नाक का वो तिल जो मुझे बहुत प्यारा लगता था, दुनियां में तेरे सिवा मुझे कोई ख़ुबसूरत नहीं लगता था,
मेरी पहली पोस्टिंग में तेरा वो मुझे दवाइयों से भरा हुआ बॉक्स देना, हर दावा को कैसे और कब खाना है वो सब डिटेल्स में लिख देना,
तेरी आँखे उस समंदर से भी ज्यादा गहरी थी जिनमें कभी मैं डूब जाया करता था,
मेरा वो डयूटी के लिए तुझसे दूर जाना  और तेरा वो दरवाज़े में खड़े रह के बस मुझे घूरना लिखा है, हिज्र की रातों में बहे तेरे आँसूओं की सिहाई से ये नज़्म लिखी है, नज़्म में बस तेरी ही बात लिखी है,
काश तू होती तो आज मैं यूँ बंजारा ना फ़िरता, कोई बेहाया मुझसे मेरी औकात ना पूछती,
तेरे लिए मेरा इश्क़ हमेशा खास था, कड़ी धूप में छाव था, काश मैं कभी तेरे मन को समझा होता, खुदगर्ज़ी में तेरे से दूर ना होता,
अपनी पलकों में मेरे ख़्वाब भी सजा लेती थी, मेरे बदले के आँसू भी बहा लेती थी, मेरी पल्लो मुझे अपनी पलकों में छुपा लेती थी,
तेरी पलकों पे सजे मेरे ख़्वाबों की दुनियां लिखी है, आज बहुत दिनों बाद एक नज़्म लिखी है और नज़्म में सिर्फ़ तेरी ही बात लिखी है।

©Lohit Tamta आज बहुत दिनों बाद एक नज़्म लिखी है,
नज़्म में सिर्फ़ तेरी ही बात लिखी है, वो हमारी पहली मुलाक़ात की दास्तां लिखी है,
ट्रैन का मेरा सफ़र और फिऱ तेरे शहर में गुज़री मेरी रात की कहानी लिखी है,
मेरी ट्रेनिंग के टाइम में वो छुट्टियों के बहाने बना कर तुझसे मुलाकात की वो हसीन शब-ए-वस्ल लिखी है,
कैसे तू मेरी नब्ज़ देख कर मेरा हाल बता देती थी, बुख़ार में मेरा सर दबा देती थी,
जब-जब तू मुझे सीने से लगाती थी मानों ज़िन्दगी वहीं थम सी जाती थी,
तेरे होंठ मेरे होंठो से टकराते थे, तब-तब मेरी साँसों को महका देते थे,
वो छत में हमारा बैठ कर ढेर सारी बातें करना, तेरा वो हँसते हुए वो मेरे बच्पन की नादानियों के किस्से सुन्ना,
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Lohit Tamta

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