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"ए - कुदरत तेरे खेल निराले, कहीं बरस कर बाढ़ बुलाई

"ए - कुदरत तेरे खेल निराले,
कहीं बरस कर बाढ़ बुलाई।
कहीं पे सूखे खेत और नाले,
फसल पे रौनक आ नहीं पाई।
है किसान तकदीर का मारा,
मिले न पशुओं को भी चारा।
अब धरती की प्यास बुझाओ,
बादल- बरसा तपन मिटाओ।"

©Vibha Sharma
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