अक्सर कहती नही,
पर महसूस करती है ये किताबे,
हर रोज़ नयी उंगलियों के निशान
,हर रोज ये किताबे अपने पन्नो पर होने देती है स्पर्श ,
किसी अन्य उंगलियों से,,,
इन किताबो का भी प्रेम निस्वार्थ है।
कोई इन्हें प्रेम करे या ना करे ,
ये सबको एक नजरिये से ही मोह्हबत करती है।इसलिए