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प्रेम की धारा धारा से मेघा ,मेघा बनावे। प्रेम से

प्रेम की धारा

धारा से मेघा ,मेघा बनावे।
प्रेम से फिर उसी धारा पर बरसा वे।

जैसे धारा को प्रेम मिले हैं।
जैसे धारा पर बूंद रूप में
 प्रेम बरसत है।।
प्रेम दिए हैं प्रेम मिले हैं।
जल मिले हैं जल बरसे हैं।।
चारों ओर संसार में प्रेम अग्न लगे हैं।

आनंद जानन प्रेम परखा वन।
मैंने जवाब नियति गान।।
अपनी बरखा कब  बरखेगी?
रुत मिलन के कब आएंगे?

थक ग्यो यह  नैना मोरा।
सखी प्रेम बिनु थकान लागो  नैना मोरा।
इंतजार में युग बीत गयो।
बीत गए दिन - रात ,
आठ पहर बीत गए, 
सुबह - शाम संघ कई  वर्ष भी!
 युग भी बित गए।

कब होगी प्रेम की बारिश ? 
कब खेलेंगे प्रेम के पुष्प?
 कब चलेगी प्रेम की आंधी?
कब बरसेगा कोरे कागज - 
पर प्रेम भरे बूंद?
कब मेरे प्रेम को मिलेगा नए पतझड़ का धूप?

... कवि सोनू प्रेम की धारा
प्रेम की धारा

धारा से मेघा ,मेघा बनावे।
प्रेम से फिर उसी धारा पर बरसा वे।

जैसे धारा को प्रेम मिले हैं।
जैसे धारा पर बूंद रूप में
 प्रेम बरसत है।।
प्रेम दिए हैं प्रेम मिले हैं।
जल मिले हैं जल बरसे हैं।।
चारों ओर संसार में प्रेम अग्न लगे हैं।

आनंद जानन प्रेम परखा वन।
मैंने जवाब नियति गान।।
अपनी बरखा कब  बरखेगी?
रुत मिलन के कब आएंगे?

थक ग्यो यह  नैना मोरा।
सखी प्रेम बिनु थकान लागो  नैना मोरा।
इंतजार में युग बीत गयो।
बीत गए दिन - रात ,
आठ पहर बीत गए, 
सुबह - शाम संघ कई  वर्ष भी!
 युग भी बित गए।

कब होगी प्रेम की बारिश ? 
कब खेलेंगे प्रेम के पुष्प?
 कब चलेगी प्रेम की आंधी?
कब बरसेगा कोरे कागज - 
पर प्रेम भरे बूंद?
कब मेरे प्रेम को मिलेगा नए पतझड़ का धूप?

... कवि सोनू प्रेम की धारा