हिंदी की अभिलाषा' हिंदी थी वह जो लोगो के ह्रदयों में उमंग भरा करती थी, हिंदी थी वह भाषा जो लोगो के दिलों मे बसा करती थी| हिंदी को ना जाने क्या हुआ रहने लगी हैरान परेशान, पूछा तो कहती है अब कहां है मेरा पहले सा सम्मान| मैं तो थी लोगो की भाषा, मैं तो थी क्रांति की परिभाषा, मैं थी विचार-संचार का साधन मैं थी लोगो की अभिलाषा मुझको देख अपनी दुर्दशा आज होती है बड़ी निराशा, सुन यह दुर्दशा व्यथा हिंदी की ह्रदय में हुआ बड़ा आघात, बात तो सच है वास्तव में हिंदी के साथ हुआ बड़ा पक्षपात| हिंदी जो थी जन-जन की भाषा और क्रांति की परिभाषा, वह हिंदी कहती है लौटा दो उसका सम्मान यही हैं उसकी अभिलाषा| अपने ही देश में हिंदी दिवस को तुम बस एक दिन ना बनाओ, मैं तो कहता हुं हिंदी दिवस का यह त्योहार तुम रोज मनाओ आओ मिलकर प्रण ले हम सब करेंगे हिंदी का सम्मान, पूरी करेंगे हिंदी की अभिलाषा देंगे उसे दिलों में विशेष स्थान| हिंदी दिवस कविता