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स्मृति की दीवारें दिलाती हैं भूली-बिसरी याद याद आ

स्मृति की  दीवारें
दिलाती हैं भूली-बिसरी याद
याद आता है इक शख्स
उसे सोच फिर 
हो जाता है इक मन उदास

यूं तो व्यस्त रहता है हर शख्स
रोजमर्रा के कुछ कामों में
पर एक वक्त ऐसा भी होता है दिन में
जब सुकून नहीं मिलता 
दुनियां के किसी आरामों में

विचलित करता है एक अनोखा शख्स
याद दिलाता है कुछ बिताए अनोखे पल
दिल हो जाता है फिर उदास
मन ही मन वो आता याद
कोशिश करता है वो उससे बात करने की
पर हर कोशिशें हो जाती जब बेकार

मन मसोस कर रह जाता वह
जीवन की नहीं दिखती कोई आस
व्याकुल हो जाता है वह
किससे निकाले अपने मन की भड़ास
जो उसका बना बैठा था ख़ास
आज वहीं समझता उसे सबसे बेकार

यूंही नही टूटता कोई 
तोड़ने की की जाती हैं साजिशें हज़ार
एक वार में नहीं मरता कोई शख्स
इसमें होती है कोशिशें बारंबार

क्यों नहीं समझता वो
जी नहीं सकता अब वो
भले ही ना मिले उम्र भर
वो रहे दूर उससे सातों जन्म
नहीं छीन सकता कोई 
उससे उस शख्स की याद

चंद लाइनों से करता बयां
रंवी अपने दिल के जज़्बात
उसे भी तो कभी दिख ही जाएंगी
अपनें इस स्मृति की दीवार।।

#स्मृति_की_दीवारें

©लक्ष्य : जीवन की राह
  #darkness