तुम्हें यूँ मेरी अब निगाहें निहारें कहाँ तक लबों से अकेले पुकारें मिलेगी कभी भी न फुरसत तुम्हें यूँ चलो आज हम तुम खुशी से गुजारें - चन्द्रेश टेलर प्रीत के मुक्तक ५