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#न्यायाधीश# खुद की लाखों गलतियों के अच्छे वकील हो

#न्यायाधीश#

खुद की लाखों गलतियों के अच्छे वकील हो तुम।

मेरी कमियां गिना,खुद को सर्वश्रेष्ठ  आंकते हो,
सच कहूं तो,हंसी आती हैं और तरस भी,
क्योंकि दोहरी शख्सियत रखते हो तुम।

खुद की लाखों गलतियों के अच्छे वकील हो तुम।

अपनी धूर्त्तता और झूठ को,होशियारी समझते हो तुम,
पर मुझे हताश करते रहने की कोशिश में,
खुद ही उलझते रहते हो तुम।

खुद की लाखों गलतियों के अच्छे वकील हो तुम।

मेरी सोच की गहराई का आकलन कर सको,
तुम्हारी संकीर्ण मानसिकता की उतनी बिसात नही।
दूसरों के विचारों, गुणों के मापदंड के मानक बने बैठे तुम,
पहले अपने वक्त को जी लो,क्योंकि दो पल की है ज़िंदगी।
समय के पहियों को उल्टा घूमाने कि किसी की औकात नही।

खुद की लाखों गलतियों के अच्छे वकील हो तुम।

दूसरों के हुनर और परिपक्वता पर उंगली उठाने वाले,
बालों की सफेदी पर अगर बुद्धिमता की परख होती तो,
लोगों में प्रतिभा नही बुजुर्गियत ही दिखती।
जिसने अपने जीवन का लेखन खुद किया हो,
उसे क्या आंक सकोगे तुम।
भीतर एक शांत समंदर है,
दृष्टि वाले नेत्रहीन ,उसमे क्या झांक सकोगे तुम।

खुद की लाखों गलतियों के अच्छे वकील हो तुम।

मुश्किल लहरों के थपेड़ों ने मुझे तैरना सिखाया है।
तुम क्या मेरे मार्गदर्शक करोगे?
मेरे हौसले ने खुद ही अपने पंखों को फैलाकर,
 मुझें उड़ना सिखाया है।

दिखावटी प्रेम को परिभाषित कर,
अपनी खोखली बुद्धि के परिचायक हो तुम।
खुद की लाखों गलतियों के अच्छे वकील हो तुम।

सोचते हो तुम्हारी कुटिल मुस्कान से अनभिज्ञ हूं मैं।
तुम्हारी बातों में उतना वजन नहीं,
सहूलियति झूठी बातों से खेलने वाले,क्यों यकीं करु तुम्हारा?,
तुम संत तो हो नहीं,जहां सब बातें सही हो,
तुम्हारी वाणी ही तो हैं बस,
कोई भजन नही।

खुद की लाखों गलतियों के अच्छे वकील हो तुम।

कोशिशें बेकार तुम्हारी,इनसे न कोई चुभन महसुस होती,
न उठती कोई टीस।।२।।

इतनी महत्ता नही तुम्हारी मेरे जीवन में,
अपने विचारों, हूनर, उसूलों के लेखन जोखन का,
परीक्षक बताकर, तुम्हें बना दूं,अपने जीवन का न्यायाधीश!

©Priyanka Sharma # न्यायाधीश
#न्यायाधीश#

खुद की लाखों गलतियों के अच्छे वकील हो तुम।

मेरी कमियां गिना,खुद को सर्वश्रेष्ठ  आंकते हो,
सच कहूं तो,हंसी आती हैं और तरस भी,
क्योंकि दोहरी शख्सियत रखते हो तुम।

खुद की लाखों गलतियों के अच्छे वकील हो तुम।

अपनी धूर्त्तता और झूठ को,होशियारी समझते हो तुम,
पर मुझे हताश करते रहने की कोशिश में,
खुद ही उलझते रहते हो तुम।

खुद की लाखों गलतियों के अच्छे वकील हो तुम।

मेरी सोच की गहराई का आकलन कर सको,
तुम्हारी संकीर्ण मानसिकता की उतनी बिसात नही।
दूसरों के विचारों, गुणों के मापदंड के मानक बने बैठे तुम,
पहले अपने वक्त को जी लो,क्योंकि दो पल की है ज़िंदगी।
समय के पहियों को उल्टा घूमाने कि किसी की औकात नही।

खुद की लाखों गलतियों के अच्छे वकील हो तुम।

दूसरों के हुनर और परिपक्वता पर उंगली उठाने वाले,
बालों की सफेदी पर अगर बुद्धिमता की परख होती तो,
लोगों में प्रतिभा नही बुजुर्गियत ही दिखती।
जिसने अपने जीवन का लेखन खुद किया हो,
उसे क्या आंक सकोगे तुम।
भीतर एक शांत समंदर है,
दृष्टि वाले नेत्रहीन ,उसमे क्या झांक सकोगे तुम।

खुद की लाखों गलतियों के अच्छे वकील हो तुम।

मुश्किल लहरों के थपेड़ों ने मुझे तैरना सिखाया है।
तुम क्या मेरे मार्गदर्शक करोगे?
मेरे हौसले ने खुद ही अपने पंखों को फैलाकर,
 मुझें उड़ना सिखाया है।

दिखावटी प्रेम को परिभाषित कर,
अपनी खोखली बुद्धि के परिचायक हो तुम।
खुद की लाखों गलतियों के अच्छे वकील हो तुम।

सोचते हो तुम्हारी कुटिल मुस्कान से अनभिज्ञ हूं मैं।
तुम्हारी बातों में उतना वजन नहीं,
सहूलियति झूठी बातों से खेलने वाले,क्यों यकीं करु तुम्हारा?,
तुम संत तो हो नहीं,जहां सब बातें सही हो,
तुम्हारी वाणी ही तो हैं बस,
कोई भजन नही।

खुद की लाखों गलतियों के अच्छे वकील हो तुम।

कोशिशें बेकार तुम्हारी,इनसे न कोई चुभन महसुस होती,
न उठती कोई टीस।।२।।

इतनी महत्ता नही तुम्हारी मेरे जीवन में,
अपने विचारों, हूनर, उसूलों के लेखन जोखन का,
परीक्षक बताकर, तुम्हें बना दूं,अपने जीवन का न्यायाधीश!

©Priyanka Sharma # न्यायाधीश

# न्यायाधीश