पल्लव की डायरी धुपो में तपे,लहरों में डग मंगाये है तुफानो के कहरो ने सताये है हिम्मतों की खेकर नाव जिंदगी यहाँ तक ला पाये है मोहरे बन, अभागे बन, हम सब फुटबॉल की तरह उछाले गये है कई बार किनारों पर आकर खेल हमारे बिगाड़े गये है सुधारो का नाम लेकर जबान,किसान सब के बजूद उजाड़े गये है मझधार में फंसे है जीवन सब के साहिल पर पहुँचने से पहले सत्ताधीश देश पूरा डुबाये जा रहे है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" सत्ताधीश देश पूरा डुबाये जा रहे है