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अक्सर देखता हूं मैं पुरुष आधिपत्य साम्राज्य में रि

अक्सर देखता हूं मैं
पुरुष आधिपत्य साम्राज्य में
रिश्ते की डोर में बंधे इंसान
निज धरा पर मेरी मानव जाति में।
बेबस-सी चलती हुई दम्पति गाडी
न विश्वास का पहिया,न प्रेम इंजन
बिना आत्मसम्मान और समर्पण गियर 
हां समाज इन्हे कहता है पति-पत्नी।
जब-तक रहेगा एकछत्र राज
इस पुरुष प्रधान समाज में
पति-पत्नी की सामाजिक मुहर के साथ,
तब-तक अनवरत रहेगा
उत्पीड़न और अत्याचार महिला के साथ।
नही चाहती अब आधुनिक पत्नि कि
हो कदमों में चांद,सितारो से मांग सजा ले,
चाह बस यही, सुख-दुख मे ही नही
पति घर के काम में थोड़ा हाथ बंटा ले।
जी जनाब! सम्भालते हुये परिवार को
पत्नी का भी दर्द करता कभी बदन,
साथ जीने-मरने की कसमें और रस्मे
फिर क्यो न सहारा दे पतिरुपी तन।
न हो अवज्ञा और अवमानना कभी
स्नेह-धागे से बुने समता सूत्र,
न बचाये जो अस्मिता नारी महान की
वों नही किसी का भाई,पति और पुत्र।
माना कि बीज अंश किसी वृक्ष का
जिससे कालांतर में कभी फूल खिला है,
परन्तु सनातन सत्य यह भी 'अनिल'
कभी भी नही वसुंधरा अंश के बीज पला है।
बनकर रहो सदा जीवनसाथी
यही है खुशहाल जीवन का मंत्र,
परस्पर बना रहे आत्मसम्मान और समर्पण
तभी विकसित होगा सामाजिक तंत्र।

©Anil Ray अक्सर देखता हूं मैं
पुरुष आधिपत्य साम्राज्य में
रिश्ते की डोर में बंधे इंसान
निज धरा पर मेरी मानव जाति में।
बेबस-सी चलती हुई दम्पति गाडी
न विश्वास का पहिया,न प्रेम इंजन
बिना आत्मसम्मान और समर्पण गियर 
हां समाज इन्हे कहता है पति-पत्नी।
अक्सर देखता हूं मैं
पुरुष आधिपत्य साम्राज्य में
रिश्ते की डोर में बंधे इंसान
निज धरा पर मेरी मानव जाति में।
बेबस-सी चलती हुई दम्पति गाडी
न विश्वास का पहिया,न प्रेम इंजन
बिना आत्मसम्मान और समर्पण गियर 
हां समाज इन्हे कहता है पति-पत्नी।
जब-तक रहेगा एकछत्र राज
इस पुरुष प्रधान समाज में
पति-पत्नी की सामाजिक मुहर के साथ,
तब-तक अनवरत रहेगा
उत्पीड़न और अत्याचार महिला के साथ।
नही चाहती अब आधुनिक पत्नि कि
हो कदमों में चांद,सितारो से मांग सजा ले,
चाह बस यही, सुख-दुख मे ही नही
पति घर के काम में थोड़ा हाथ बंटा ले।
जी जनाब! सम्भालते हुये परिवार को
पत्नी का भी दर्द करता कभी बदन,
साथ जीने-मरने की कसमें और रस्मे
फिर क्यो न सहारा दे पतिरुपी तन।
न हो अवज्ञा और अवमानना कभी
स्नेह-धागे से बुने समता सूत्र,
न बचाये जो अस्मिता नारी महान की
वों नही किसी का भाई,पति और पुत्र।
माना कि बीज अंश किसी वृक्ष का
जिससे कालांतर में कभी फूल खिला है,
परन्तु सनातन सत्य यह भी 'अनिल'
कभी भी नही वसुंधरा अंश के बीज पला है।
बनकर रहो सदा जीवनसाथी
यही है खुशहाल जीवन का मंत्र,
परस्पर बना रहे आत्मसम्मान और समर्पण
तभी विकसित होगा सामाजिक तंत्र।

©Anil Ray अक्सर देखता हूं मैं
पुरुष आधिपत्य साम्राज्य में
रिश्ते की डोर में बंधे इंसान
निज धरा पर मेरी मानव जाति में।
बेबस-सी चलती हुई दम्पति गाडी
न विश्वास का पहिया,न प्रेम इंजन
बिना आत्मसम्मान और समर्पण गियर 
हां समाज इन्हे कहता है पति-पत्नी।
anilray3605

Anil Ray

Bronze Star
Growing Creator