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2122 2122 212 दूर तक अपना मुझे दिखता नहीं कोई भी म

2122 2122 212
दूर तक अपना मुझे दिखता नहीं
कोई भी मेरी तरह तन्हा नहीं

बेवफ़ाई तुमने मुझसे की सदा
सौदा ऐसा इश्क़ का होता नहीं

ज़िन्दगी की सीख तुम ये जान लो
काम छोटा कोई भी होता नहीं

जो न रक्खे दुन्या में ग़म का हिसाब
पास उसके ग़म कभी आता नहीं

दूसरों के वास्ते हरदम जला
आंधी में भी वो दिया बुझता नहीं

आज सागर कश्ती से नाराज़ है
दूर साहिल से बहुत जाना नहीं

तुम "सफ़र" अब रोक लो अपने क़दम
जो भी तूफ़ाँ से लड़ा लौटा नहीं ग़ज़ल 8/2022

#सफ़र_ए_प्रेरित #शायरी #shayari #yqbaba #yqdidi #philosophy #gazal
2122 2122 212
दूर तक अपना मुझे दिखता नहीं
कोई भी मेरी तरह तन्हा नहीं

बेवफ़ाई तुमने मुझसे की सदा
सौदा ऐसा इश्क़ का होता नहीं

ज़िन्दगी की सीख तुम ये जान लो
काम छोटा कोई भी होता नहीं

जो न रक्खे दुन्या में ग़म का हिसाब
पास उसके ग़म कभी आता नहीं

दूसरों के वास्ते हरदम जला
आंधी में भी वो दिया बुझता नहीं

आज सागर कश्ती से नाराज़ है
दूर साहिल से बहुत जाना नहीं

तुम "सफ़र" अब रोक लो अपने क़दम
जो भी तूफ़ाँ से लड़ा लौटा नहीं ग़ज़ल 8/2022

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