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गजल के एक मतला और चन्द शेर न दिलवर याद आता है न

 गजल के एक मतला और चन्द शेर 

न दिलवर याद आता है न कातिल याद आता है 
फंसे कश्ती जो तूफां में तो साहिल याद आता है 

गया जो छोड़ कर मुझको, खुदा की मसलहत होगी 
हयाते बज्म का वो ही था हासिल याद आता है
 गजल के एक मतला और चन्द शेर 

न दिलवर याद आता है न कातिल याद आता है 
फंसे कश्ती जो तूफां में तो साहिल याद आता है 

गया जो छोड़ कर मुझको, खुदा की मसलहत होगी 
हयाते बज्म का वो ही था हासिल याद आता है