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White वाराणसी के घाटों की खुशी शायद नहीं थी मुझ म

White  वाराणसी के घाटों की खुशी
शायद नहीं थी मुझ में बसी 
                                    
                                              तभी तो लौटा दिया 
                                                       बिन गलती के दफा किया 
                                                  कागजों की गलती को 
                                                      नामंजूरी का बहाना दिया।

'मैं' और सिर्फ 'मैं' ने
                  किसी के जज्बातों को मिटा दिया
   इस काशी की धरा को 
             काशी-वालों से जुदा किया है ।

                                     है जो कुछ लोग 
                                           जो बदलाव चाहते हैं 
                                     रातों-रात उनको 
                                               देशद्रोही का नाम दिया ।

                                                                                                 'श्याम' की उम्मीद को 
                                                                                             कॉमेडी समझ टाल दिया 
                                                                                           लोकतांत्रिक अधिकारों को 
                                                                                             पन्नों की तरह फाड़ दिया।
      अभी भी वक्त है 
           समझ जाओ 
हिंदुस्तान के बाशिंदों 
           संभल जाओ

                                                            राजनीति से 'नीति' 
                                                                   कहीं ओझल ना हो जाए 
                                                                      एक चिराग नैतिकता वाला 
                                                                  हर कोने में जला आओ।

©Jaidev Joshi 
  Shyam Rangeela and today's politics 

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