बैठी दरिया पे पानी देख रही है... ये प्यास हमारी हानी देख रही है..। किरदार हमारा फ़ौरन किसने बदला... तू लेखक की मनमानी देख रही है..। मुंसिफ़ उसके हक़ मॆं कलमा पढ़ते हैं. गुनहगार की आसानी देख रही है..। फिर क़त्ल हुआ और किसीको क्यां मतलब... जैसे कोई आँख कहानी देख रही है..। समझदार को एक इशारा काफ़ी है ... ख़ामोश की मुँह-ज़बानी देख रही है..। - ख़ब्तुल संदीप बडवाईक ©sandeep badwaik(ख़ब्तुल) 9764984139 instagram id: Sandeep.badwaik.3 मनमानी