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आगी उगलता सूरज, जीव होय बेचैन। तरसे धरा मिलने को,

आगी उगलता सूरज,
जीव होय बेचैन।
तरसे धरा मिलने को,
मेघ बसे बस नैन।

©shrikant yadav #मेघ
आगी उगलता सूरज,
जीव होय बेचैन।
तरसे धरा मिलने को,
मेघ बसे बस नैन।

©shrikant yadav #मेघ