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ऐ मंजिल जरा सा सब्र कर आज नहीं तो कल मैं तुम्हें

ऐ मंजिल जरा सा सब्र कर 
आज नहीं तो कल मैं तुम्हें लेने अवस्य आउगा 
ऐ मंजिल जरा सा सब्र कर। 

इस पानी में पुरी तरह से डूबा नहीं हु मैं
अब डूब कर दिखाना है 
ऐ मंजिल जरा सा सब्र कर।

जरा सा फीसल गया था
मेरे अरमानो का ख्वाब 
ऐ मंजिल जरा सा सब्र कर।

©akshayskChoudhary 
  कविता मेरी आँखों से गिरने है Miआसुऔ में शामिल करने की कोशिश कर दिया है

कविता मेरी आँखों से गिरने है Miआसुऔ में शामिल करने की कोशिश कर दिया है

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