तलाश जारी है मेरी खोजने मेरे वजूद को क्या यही हूँ मैं या कुछ अलग है पहचान मेरी ये नज़र में बसा शहर क्यों वीरान सा लगता है छल से भरे प्याले गटागट पी रहें हैं हम रिश्तों का बाजार है सज़ा लेकिन बड़े सस्ते बिकते हैं जज़्बात ये कैसी दुनिया है जहाँ कैद हैं राहें नकाब ओढे घूमते शख्स पीठ पीछे खंजर घोंपते क्या इन्हीं में कहीं छुपा मेरा भी अक्स या किसी भ्रम का शिकार हो चला मन हाँ तलाश जारी है मेरी खोजने मेरे ही वज़ूद क ©DEAR COMRADE (ANKUR~MISHRA) तलाश जारी है मेरी खोजने मेरे वजूद को क्या यही हूँ मैं या कुछ अलग है पहचान मेरी ये नज़र में बसा शहर क्यों वीरान सा लगता है छल से भरे प्याले गटागट पी रहें हैं हम