"बप्पा-रावल" ( क्रमशः-02 ) जब उस युवा लड़को को नागदा का सामन्त बना दिया गया तो वहाँ के जो पुराने सामन्त थे विद्रोह करने लगे उसी दौरान किसी विदेशी आक्रमण की सूचना मिली अन्य सामन्त इस अवसर का फ़ायदा उठाना चाहते थे नव सीखिए सामन्त को सेनापति बनाकर युद्ध में भेज दिया।मैदान में जाकर नए जोश के साथ सेनापति ने आक्रमणकारियों को खदेड़ दिया और विजय प्राप्त की साथ ही उन विरोधी सामन्तों को भी समझाया तब किसी ने उनको सम्बोधित किया भई- ये है सबका बाप और वही बाप आगे चलकर 'बप्पा' हो गया। ऐसा सुना गया है कि मोहम्मद-बिन-क़ासिम की फ़ौज लेकर यज़ीद ने सिंध प्रदेश को जीत लिया और अपने क्षेत्र को विस्तार देने के लिए उसने चित्तोड़ पर आक्रमण कर दिया तब चित्तोड़ की रक्षा करने के लिए बप्पा ने उनसे युद्ध किया और जब मुस्लिम सेना भाग खड़ी हुई तो उनका पीछा करते करते अफगानिस्तान के ग़जनी शहर में जाकर अपना झण्डा गाढ़ दिया। तो वहाँ के शासक ने अपनी बेटी का ब्याह बप्पा के साथ कर दिया।इसी विजय के क्रम को आगे बढ़ाते हुए बप्पा ने ईरान,इराक़, तुर्क जैसे कई राज्य जीते और अनेक विवाह किए।कहते हैं कि बप्पा की मुस्लिम पत्नियों से 32 पुत्र हुए जिन्हें इतिहास में "नौशेरा पठान" कहा जाता है।बप्पा की हिन्दू पत्नियों से 98 सन्तान हुई। बप्पा ने अपने समय में टॉड के अनुसार-अजमेर,कोटा,सौराष्ट्र,गुजरात के अतिरिक्त हूण सरदार और जांगल प्रदेश के राजाओं को एकत्रित कर विदेशी आक्रमणकारियों को धूल चटा दी थी। : इन बातों में कितनी सच्चाई है ये तो शोध का विषय है किन्तु बप्पा रावल की वीरता और पराक्रम को भी राजस्थान के इतिहास में सदैव याद किया जाएगा। : कर्नल टॉड का गणित कहता है कि- वल्लभीपुर के पतन के 190 साल बाद बप्पा का जन्म हुआ। वल्लभी संवत विक्रमी संवत के 375 वर्ष पीछे चला इसलिए- 205+ 375 = 580 वि.स. अथवा 524 ई. में वल्लभी का पतन हुआ।यदि 190 साल बाद बप्पा का जन्म हुआ तो - 580+190=770 वि.स.का अनुमान है। इस समय चित्तोड़ का राजा मान-मोरी मौजूद था।डॉ गोपीनाथ कहते हैं कि वल्लभी का विनाश वि.स.- 826 ( 769 ई. ) में हुआ।इसमें अगर 190 जोड़ें तो समय बहुत आगे निकल जाता है जो ठीक नहीं।श्यामलदास के अनुसार बप्पक ने 734ई.में चित्तोड़ का किला जीता इसलिए उसका समय आठवीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध मानना अधिक ठीक रहेगा।भण्डारकर भी इसी समय को ठीक मानते हैं।ओझा जी बापा की विजय 713 ई. के बाद सन्यास का समय 753ई. मानते हैं।जबकि डॉ गोपीनाथ शर्मा 727 ई. और 753 ई.को निर्मूल मानते हैं।उन्होंने सातवीं शताब्दी के तृतीय चरण के आसपास का समय ही उचित माना है। : एक जनश्रुति के अनुसार- बप्पा ने चित्तोड़ के मौर्यवंशी राजा मान-मोरी को परास्त कर मेवाड़ क्षेत्र में एक स्वतंत्र राजवंश की नींव रखी जो "गुहिल" के नाम से विख्यात हुआ। :