दिन निकलते ही.. पहली नजर जो तुझ पर पड़ी माँ मुरझाये चेहरे पर बेइंतेहा खुशी बिखर पड़ी माँ उठकर बिस्तर से तेरी आगोश़ में आ गया मैं तेरे छूने भर से धड़कनें मेरे दिल की चल पड़ी माँ कभी जो मेरा हो कुछ नही था ऐसा मेरे पास में तन्हा राहों में मेरा सब कुछ तू ही बनकर खड़ी माँ जब जब भी मैं वक्त के हाथों हार गया कमजोर बनकर हिम्मत बनी मेरी और मेरे लिये तू वक्त से लड़ी माँ छोड़ रहे सब मुझे आज मेरे हालात देखकर 'दीपक' मेरी आँखों से बह निकली आंसुओं की एक झड़ी माँ मैं तो मैं भी नही तुझसे ही शुरू..और तू ही आख़री कड़ी माँ किसे कहूं ईश्वर क्योकि.. तू तो ईश्वर से भी बड़ी है माँ। दीपक कुमार 'निमेश' तुझे याद तो हूं ना माँ..🤗