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ख़्वाब टूट चुके थे चाहतों के फिर भी एक आस छाया रहा

ख़्वाब टूट चुके थे चाहतों के फिर भी एक आस छाया रहा,

उम्र गुजरती रही रेत सी फिसलती रही,

वक्त का दंभ नहीं टूटा वो हर मोड़ पर हमे आजमाता रहा,

मुद्दत्ते बीती सुर्ख आंखों में नींद ना रही,

 निश्छल निहारता हमे यूंही रात भर इक चाँद का साया रहा,

©shalmali shreyanker
  shalmali Shreyanker

shalmali Shreyanker #Poetry

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