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सोची हुई प्रेयसी इस शरद चांदनी के आगोश में , तु

सोची हुई प्रेयसी 

 इस शरद चांदनी के आगोश में ,
तुम भी हो , मै भी हु , तुम भी हो।
बात नैनो से करते है दोनों यहाँ ,
चुप तुम भी हो, मै भी हु, तुम भी हो।
धड़कने कह रही तुम तो मेरी सुनो,
जो है दिल कह रहा बस उसीको चुनो ।
दिल की ख्वाहिश मै मेरे बस एक यहाँ ,
तुम ही हो , तुम ही हो , तुम ही हो।
इस शरद चांदनी के आगोश में,
तुम भी हो , मै भी हु , तुम भी हो।
तेरी आँखों का काजल भी कुछ कह रहा,
दर्द विरह के दिल ये क्यो सह रहा।
इस दर्द की तड़पती आवाज में,
तुम भी हो , मै भी हु , तुम भी हो।
इस शरद चांदनी के आगोश में,
तुम भी हो , मै भी हु , तुम भी हो।
तेरे नैना है जैसे कि सागर कोई ,
अमृत  से भरा  जैसे गागर कोई।
इस अमृत की तृष्णा के प्यासे यहां,
तुम भी हो ,मै भी हु, तुम भी हो।
इस शरद चांदनी के आगोश में ,
तुम भी हो, मै भी हु, तुम भी हो।
सोच कर के तुझे मैने वर्णन किया,
जो हुआ ही नही है उसे जी लिया।
मेरी कविता का इक - इक कतरा यहां ,
तुम भी हो , मै भी हु , तुम भी हो।
                               लेखक- प्रवीण मगर स्वप्न प्रेयसी
सोची हुई प्रेयसी 

 इस शरद चांदनी के आगोश में ,
तुम भी हो , मै भी हु , तुम भी हो।
बात नैनो से करते है दोनों यहाँ ,
चुप तुम भी हो, मै भी हु, तुम भी हो।
धड़कने कह रही तुम तो मेरी सुनो,
जो है दिल कह रहा बस उसीको चुनो ।
दिल की ख्वाहिश मै मेरे बस एक यहाँ ,
तुम ही हो , तुम ही हो , तुम ही हो।
इस शरद चांदनी के आगोश में,
तुम भी हो , मै भी हु , तुम भी हो।
तेरी आँखों का काजल भी कुछ कह रहा,
दर्द विरह के दिल ये क्यो सह रहा।
इस दर्द की तड़पती आवाज में,
तुम भी हो , मै भी हु , तुम भी हो।
इस शरद चांदनी के आगोश में,
तुम भी हो , मै भी हु , तुम भी हो।
तेरे नैना है जैसे कि सागर कोई ,
अमृत  से भरा  जैसे गागर कोई।
इस अमृत की तृष्णा के प्यासे यहां,
तुम भी हो ,मै भी हु, तुम भी हो।
इस शरद चांदनी के आगोश में ,
तुम भी हो, मै भी हु, तुम भी हो।
सोच कर के तुझे मैने वर्णन किया,
जो हुआ ही नही है उसे जी लिया।
मेरी कविता का इक - इक कतरा यहां ,
तुम भी हो , मै भी हु , तुम भी हो।
                               लेखक- प्रवीण मगर स्वप्न प्रेयसी