जनहित की रामायण- 35 कॉरपोरेट का गाना गाते ! कर्जे उनके माफ कराते !! किसान कर्ज न होवे माफ ! खेती किसानी हो रही साफ !! उचित दाम पे बिके न धान ! इसीसे आहत होत किसान !! मेहनत पूरी कर्ता है ! फिर भी भूखा मरता है !! शर्मनाक है ये हालात ! दीन दुखी की काली रात !! महिला खौफ में जीती है ! अपराध की तूती बजती है !! जला दी जात हैं रातों रात ! बचा ली जाती न्यायिक लात !! किसान सड़क पर बैठे है ! सत्ताधीश अब तक ऐंठे है !! समझौते की राह नहीं ! समझौते की चाह नहीं !! चौपट है सारे धन्धे ! सत्ता सच से आंखे मूँदे !! मीडिया डोर है जिसके हाथ ! उन्हीं के हाथ में इनका हाथ !! खालिस झूठ परोसा जात ! जनकल्याण को मारत लात !! चुने हुओं का होत विकास ! छंटे हुए है सारे साथ !! जन की रोजी बिचक रही ! जन की रोटी खिसक रही !! शव दाह में भी सकुचाते ! विश्वशक्ति के ख्वाब दिखाते !! जन जन की बंधी रहे आस ! छद्म तिलस्म का होगा नाश !! - आवेश हिन्दुस्तानी 11.07.2021 ©Ashok Mangal #kisaan #majdoor #mahila #judiciary #PoliticsLive