अब कैं राखि लेहु भगवान | हौं अनाथ बैठ्यौ द्रुम-डरिया, पारधि साधे बान | ताकैं डर मैं भाज्यौ चाहत, ऊपर ढुक्यौ सचान | दुहूँ भाँति दुख भयौ आनि यह, कौन उबारे प्रान ? सुमिरत ही अहि डस्यौ पारधी, कर छूट्यौ संधान | सूरदास सर लग्यौ सचानहिं, जय जय कृपानिधान || सूरदास