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समाज का नुकसान हुआ है मठ और मंदिर संस्कृति से। इसी

समाज का नुकसान हुआ है मठ और मंदिर संस्कृति से। इसी संस्कृति ने संग्रह को जन्म दिया है । जिससे पाप करने के बाद मठ और मंदिर में चढ़ावा चढ़ाने से वह पाप कटने का सिद्धांत वज़ूद में आया। मठों की इसी संस्कृति ने गिरोहों और गिरोहियों को जन्म दिया और यही गिरोही ऊंच और नीच का वर्ग विभेद पैदा किये।
अगर संस्कृति बचानी हो तो वापस आश्रम-पद्धति में लौटना होगा जहाँ अमीर कृष्ण और ग़रीब सुदामा एक साथ ज़मीन पर गुरु संदीपन के सानिध्य में शिक्षा ले सकें।
जहाँ जाम्बाल से बिना उसकी जाति जाने शिक्षा दी जाती हो ,जहाँ इतना लोकतंत्र हो कि श्वेतकेतु अपने पिता से बहस कर सके और उस बहस के परिणामस्वरूप 'तत्वमसि-तत्वमसि' का सिद्धांत वज़ूद में आ सके।
जहाँ बुद्ध के विहार हों वहीं समाज निर्माण हो पायेगा ,क्योंकि चीवरधारी भिक्षु ही त्याग का संदेश दे सकता न कि मठों पर और उसकी संपत्ति पर कब्ज़ा किये हुए महंत और केवल ऊपरी चोला बदलकर भेष बनाये हुए मिथ्याभाषण करने वाले तथाकथित साधु। 
जो ख़ुद संग्रह कर रहा है ,वह क्या असंग्रह को जन्म देगा। जबकि आज यह धरती , सभ्यता और समाज बचाने के लिए असंग्रह की धारा में चलना होगा।

सत्य मगर कट्टू👍🙏
जय श्री कृष्णा 💐

          सत्येन्द्र कुमार यादव

©Satya Yaduvanshi
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