संगम की धरती पे एक पेड़ था, क्या हुआ जो आज शाखाए अलग हो गई, चले तो साथ थे यारों,क्या हुआ जो राहें अलग हो गई. Nokia से I phone की दौड़ थी , नीयत हांलांकि कुछ और थी , यार यहाँ pollution बहुत है, लगता है फ़िज़ाए भी अलग हो गई, चले तो साथ थे यारों, क्या हुआ जो राहें अलग हो गई. जिन नन्ही आँखों से सपने देखे थे, वो लाल हैँ, साले कल का hangover है, कैसे वक़्त के साथ साथ चलते, आज निगाहें भी अलग हो गई, चले तो साथ थे यारों, क्या हुआ जो राहें अलग हो गई. याद है भाई वो भुर्जी बनाना, वो मोटी मोटी कच्ची रोटियों की मिठास, बेटी कलसे pizza खाने की ज़िद्द कर रही है, ज़िम्मेदारी बड़ी तो आशाएं अलग हो गई, चले तो साथ थे यारों,क्या हुआ जो राहें अलग हो गई. मेरे बचपन के एक मित्र जो की मेरे साथ इलाहाबाद अब प्रयाग राज मे पड़ते थे रोज़ ये शिकायत करते हैँ की तू phone नहीं उठता बड़ा आदमी बन गया है. ये कुछ शब्द उनके लिए #दोस्ती #yqdidi #yqbaba #yqhindipoetry #yqhindishayari #evolution #vatsa